आस्था

गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं है

देवीपुराण, नारदपुराण और मत्स्य आदि पुराणों में गंगाजल की महिमा का गुणगान किया गया है। जहां देवी गंगा को सर्व तीर्थमयी कहा गया है वहीं पर गंगा के नामों का संकीर्तन, स्नान एवं जलपान को महान पुण्यदायी बतलाया गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अनेकों दानपुण्यादि करके मनुष्य जो पुण्य अर्जित करता है उससे भी अधिक पुण्य की प्राप्ति चुल्लू भर गंगाजल पीने से होता है। नारद पुराण के अनुसार गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं है, माता के समान कोई गुरु नहीं है, भगवान विष्णु के समान कोई देवता नहीं है और उपवास से बढ़कर कोई तप नहीं है, क्षमा के समान कोई माता नहीं है, कीर्ति के समान कोई धन नहीं है, ज्ञान के समान कोई लाभ नहीं है, धर्म के समान कोई पिता नहीं है, विवेक के समान कोई बंधु नहीं है और एकादशी से बढ़कर कोई व्रत नहीं है। विधि पूर्वक कन्यादान और भक्ति पूर्वक भूमिदान, अन्नदान, गोदान, स्वर्णदान, रथदान, अश्वदान और गजदान आदि करने से जो पुण्य बताया गया है, उससे सौ गुना अधिक पुण्य चुल्लू भर गंगाजल पीने से होता है। सहस्त्रों चांद्रायण व्रत का जो फल कहा गया है उससे अधिक गंगाजल पीने से होता है। चुल्लू भर गंगाजल पीने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। जो इच्छा अनुसार गंगा जी का पानी पीता है उसकी मुक्ति हाथ में ही है। सरस्वती नदी का जल तीन महीने में, यमुना जी का जल सात महीने में, नर्मदा जी का जल दस महीने में तथा गंगा जी का जल एक वर्ष में पचता है। अर्थात शरीर में उसका प्रभाव विद्यमान रहता है। अज्ञात स्थान में मरे हुए प्राणियों की हड्डियों का संयोग होने पर परलोक में उत्तम फलों की प्राप्ति होती है। मत्स्य महापुराण के अनुसार मनुष्य कितना भी बड़ा पापी क्यों न हो यदि वह हजारों योजन दूर से भी गंगा का स्मरण करता है तो उसे परम गति की प्राप्ति होती है। गंगा का नाम लेने से मनुष्य पाप से छूट जाता है, दर्शन करने से उसे जीवन में मांगलिक अवसर देखने को मिलते हैं तथा स्नान व जलपान करके तो वह अपने सात पीढ़ियों को पावन बना देता है। देवीपुराण के अनुसार जो पुण्य सभी तीर्थों में किए गए स्नान, सभी देवताओं के पूजन, सब प्रकार के यज्ञ, तप, दान आदि से प्राप्त होता है, वह गंगा के स्मरण मात्र से प्राप्त हो जाता है। इस प्रकार गंगा सभी कामनाओं की सिद्धि करने वाली सभी प्रकार के पापों का नाश करने वाली, समग्र अमंगलों को मिटा देने वाली तथा सभी संपदाओं को प्रदान करने वाली है। हजारों महायज्ञ तथा सैकड़ों व्रत और पूजा आदि गंगा स्नान की एक कला के बराबर नहीं है। इस प्रकार गंगा जी का दर्शन, स्तुति, स्नान, रसपान करने वाला मनुष्य स्वर्ग, निर्मल, ज्ञान,योग तथा मोक्ष सब कुछ पा लेता है, इसमें संशय नहीं है।

डॉ शैलेश मोदनवाल
ज्योतिष एवं तंत्र आचार्य
मछलीशहर, जौनपुर, उ प्र।

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