आस्था

कार्तिकमास में सूर्य की उपासना है विशेष फलदायी

मछलीशहर। कार्तिकमास में सूर्य की उपासना को विशेष फलदायी कहा गया है। भविष्यपुराण का उद्धरण देते हुए ज्योतिष एवं तंत्र आचार्य डॉक्टर शैलेश मोदनवाल बताते है कि भगवान सूर्य के दर्शन मात्र से ही गंगा स्नान का फल एवं उन्हें प्रणाम करने से सभी तीर्थों का फल प्राप्त हो जाता है तथा सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। संध्या समय में सूर्य की सेवा करने वाला सूर्य लोक में प्रतिष्ठित होता है। एक बार भी भगवान सूर्य की आराधना करने से ब्रह्मा, विष्णु, महेश, पितृगण तथा सभी देवगण एक ही साथ पूजित एवं संतुष्ट हो जाते है। सूर्य देव के लिए विधिवत एक बार भी किया गया प्रणाम दस अश्वमेध यज्ञ के बराबर होता है। दस अश्वमेध यज्ञ को करने वाला मनुष्य बार-बार जन्म लेता है किंतु सूर्य देव को प्रणाम करने वाला पुनः संसार में जन्म नहीं लेता। भगवान सूर्य की उपासना में पुष्पों का विशेष महत्व है। डॉ मोदनवाल के अनुसार भगवान सूर्य को लाल रंग के पुष्प विशेष प्रिय है। जो मनुष्य लाल कनेर की पुष्पों से भगवान सूर्य की पूजा करता है वह अनंत कल्पों तक सूर्य लोक में सूर्य के समान श्रीमान तथा पराक्रमी होकर निवास करता है। इसी प्रकार अगस्त्य के पुष्प से भगवान सूर्य की उपासना करने वाला व्यक्ति दस लाख गोदान का फल प्राप्त करता है। इसके अलावा मालती, रक्त कमल, चमेली, पुन्नाग, चंपक, अशोक, श्वेत मदार, कचनार, अंधुक, करवीर, कल्हार, शमी, तगर, कनेर, केसर, बक तथा कमल पुष्पों को भी पुण्यदायी कहा गया है। भगवान सूर्य को जल, दूध, कुश का अग्रभाग, घी, दही, मधु, लाल कनेर का फूल तथा लाल चंदन अष्टांग अर्घ्य कहे गए हैं इनके द्वारा सूर्य को अर्घ निवेदित करने से दस हजार वर्ष तक सूर्य लोक में बिहार करने का सुख प्राप्त होता है। यह अष्टांग अर्घ्य भगवान सूर्य को विशेष प्रिय है।

Back to top button
Close