आस्था

तुलसीदलयुक्त पिंडदान है फलदायी

मछलीशहर। पितृपक्ष पितरों की शांति के लिए तर्पण, श्राद्घ एवं दान आदि के लिए महत्वपूर्ण मानी गई है। देवी पुराण के अनुसार जो पितरों के पिंड में तुलसीदल मिलाकर दान करता है उसके दिए हुए एक दिन के पिंड से पितरों को सौ वर्षों तक तृप्ति बनी रहती है। इस प्रकार पिंडदान में तुलसी, काला तिल, मधु, दूध से निर्मित घृत युक्त खीर एवं फलों में अनार का विशेष महत्व है। इसके द्वारा किए गए पिंडदान से पितरों को विशेष संतुष्टि प्राप्त होती है और श्राद्धकर्ता के अभीष्ट की पूर्ति होती है।ज्योतिष एवं तंत्र आचार्य डॉ शैलेश मोदनवाल के अनुसार इस पक्ष में पशु पक्षियों को भोजन कराना चाहिए और गाय को, कुत्ता को व कौवा को नित्य दोनिया रखना चाहिए। पितृ दोष निवारण यंत्र की गंध पुष्प आदि से नित्य पूजा करना चाहिए। रुचिकृत पितृस्तोत्र का नियमित पाठ करना चाहिए। अंजलि में उसके साथ तिलमिश्रित जल को अंगूठे की ओर से पृथ्वी पर छोड़ने से पितरों को तृप्ति मिलती है इस प्रकार तर्पण करना चाहिए। गौ और ब्राह्मणों को मिष्ठान खिलाकर उनकी नित्य सेवा करना चाहिए। किसी भी नए शुभ कार्यों का शुभारंभ नहीं करना चाहिए।
पितरों को प्रिय है – जल, तिल, सव्यांग, डाभ, फल का गूदा, गोदुग्ध, मधुर रस, खंग, लोह, मधु, कुश, सावां, अगहनी का चावल, यव, तिन्नी का चावल, मूंग, गन्ना, श्वेत पुष्प और घृत – ये पदार्थ पितरों के लिए सर्वदा प्रिय और प्रशस्त कहे गए है। दही, दूध, घृत, शक्कर मिश्रित अन्न व खीर आदि जो कुछ भी पितरों को दिया जाता है, वह अक्षय होता है।

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