आस्था

संतान को दीर्घायुत्व प्रदान करता है जीवित्पुत्रिका व्रत

मछलीशहर। (dr शैलेश गुप्त्ता)जीवित्पुत्रिका व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को पुत्रवती महिलाएं अपने पुत्र के दीर्घायुत्व के लिए करती हैं। इस वर्ष इस व्रत का सुखद संयोग 29 सितंबर बुधवार को प्राप्त होगा। ज्योतिष एवं तंत्र आचार्य डॉ शैलेश मोदनवाल के अनुसार यह व्रत संतान को बला एवं कष्टों से बचाता है और उनके जीवन को दीर्घायुत्व प्रदान करता है। अथवा ऐसी महिलाएं जिनके पुत्र होते हैं किंतु जीवित नहीं बचते वह इस व्रत के करने से जीवित रहने लगते हैं। इस व्रत के प्रभाव से अश्वत्थामा के अमोघ अस्त्र से उत्तरा के गर्भ की रक्षा हुई थी और परीक्षित को जीवनदान मिला था। भगवान कृष्ण ने उत्तरा के गर्भ में सूक्ष्म रूप में प्रविष्ट होकर अश्वत्थामा के अमोघ अस्त्र को अपने ऊपर ले लिया और उत्तरा के गर्भ में पल रहे गर्भ की रक्षा की तभी से यह व्रत जीवित्पुत्रिका के नाम से विख्यात हुआ।
व्रत विधान – आश्विन कृष्णा अष्टमी के दिन स्नान आदि से निवृत हो भगवान सूर्यनारायण की प्रतिमा को स्नान करा कर गंध,पुष्प, अक्षत, धूप, दीप आदि से उनकी पूजा की जाती है। बाजरे व चने से बना भोग अर्पित किया जाता है। इस दिन स्त्रियां उड़द के कुछ साबुत दाने निगल जाती हैं जिसका प्रयोजन भगवान श्री कृष्ण के सूक्ष्म रूप को उदर में प्रवेश माना जाता है। इस दिन गेहूं तथा उड़द की दान का विशेष महत्व है। इस दिन ब्राह्मण को भोजन कराया जाता है, उन्हें दान दक्षिणा दिया जाता है। इस दिन व्रती महिलाएं अपने पुत्रों के गले में काले अथवा लाल रंग के रक्षा सूत्र या धागे को पहनाती है। 24 घंटे के उपवास के बाद दूसरे दिन ब्रह्म बेला में दही चूड़े का भोग लगाकर उसका कुछ भाग पशु पक्षियों के लिए निकाला जाता है और प्रसाद के रूप में महिलाएं ग्रहण करती हैं।

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