आस्था

अक्षय सौभाग्य की प्राप्ति कराता है हलषष्ठी व्रत

मछलीशहर। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हल धारी प्रभु श्री बलराम जी का जन्म हुआ था इसलिए यह व्रत हलषष्ठी अथवा ललही छठ के नाम से जाना जाता है। प्रत्येक वर्ष भादो मास की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को यह व्रत विशेष रूप से पुत्रवती माताओं के द्वारा किया जाता है। मां ललिता देवी की कृपा से इस व्रत को करने से स्त्रियों को अक्षय सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती है। ज्योतिष एवं तंत्र आचार्य डॉ शैलेश मोदनवाल के अनुसार इस वर्ष हलषष्ठी अर्थात ललही छठ व्रत का सुखद संयोग 28 अगस्त दिन शनिवार को प्राप्त होगा। पूजा विधान- भादो मास की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को सुहागिन औरतें अपनी अपनी परंपराओं के अनुसार आंगन में, मंदिर प्रांगण अथवा जलाशय के किनारे भूमि को गोबर से लीपकर जलकुंड बनाती हैं उसमें पलाश, गूलर, कुश प्रभृति टहनियां गाड़ कर ललही की पूजा करती है। पूजन में सात प्रकार के अनाज- गेहूं, चना, धान, मक्का, अरहर, ज्वार और बाजरा का भुना लावा एवं महुआ चढ़ाने का विधान है। इसमें गाय के बजाए भैंस का दूध दही चढ़ाया जाता है। लाल, पीला वस्त्र हल्दी से रंगा हुआ वस्त्र सुहाग का सामान- सिंदूर, रोली, चावल, मेंहदी, चूड़ी, बिंदिया आदि चढ़ाया जाता है। पूजनोपरांत मां ललिता देवी से अक्षय सौभाग्य की कामना की जाती है। इस व्रत में स्त्रियां तिन्नी का चावल तथा भैंस के दूध अथवा दही का सेवन करती है। व्रती महिलाएं अपने द्वारा चढ़ाए हुए प्रसाद का सेवन नहीं करती है बल्कि पड़ोस से आए हुए प्रसाद को ही ग्रहण करती है।
ज्योतिष एवं तंत्र आचार्य
डॉ शैलेश मोदनवाल
मछली शहर, जौनपुर, उ प्र।

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