लाडली बहना योजना पर रोक लगाने से मुंबई हाईकोर्ट ने किया इंकार
हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि सरकार के नीतिगत फसलों में दखलंदाजी नहीं
मुंबई (महानगर समाचार) महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के महत्वाकांक्षी योजना लाडली बहना योजना पर दायर जनहित याचिका पर मुंबई हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान अपने अहम फैसले में न्यायाधीशों ने कहा कि सरकार के नीतिगत फैसलों में दखलअंदाजी करने से इंकार कर दिया। इस योजना के विरुद्ध नवी मुंबई के सीए नावेद अब्दुल सईद मुल्ला ने जनहित याचिका दायर की थी याचिका कर्ता की दलील थी कि लाडली बहना योजना राजनीति से प्रेरित है और टैक्स पेयर के पैसों की बर्बादी है। जनहित याचिका में कहा गया था कि महाराष्ट्र पर पहले से ही 7.8 लाख करोड रुपए का कर्ज है, वहीं राज्य के वित्त विभाग ने भी इस योजना को लेकर चिंता जताई है। इसका उद्देश्य महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा के चुनाव को प्रभावित करना है, लेकिन इन सारी दलीलों को हाईकोर्ट ने सिरे से खारिज कर दिया। शिंदे सरकार ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अपनी इस ड्रीम योजना के तहत 21 से 60 साल की महिलाओं को हर महीने ₹1500 देने का ऐलान किया है। इस योजना की मंशा को लेकर विपक्षी दलों ने भी महायुति पर निशाना साधा था।
मुंबई हाईकोर्ट में सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति अमित बोरकर की पीठ ने कहा कि हम यह तय नहीं कर सकते कि सरकार को कौन सी योजना प्राथमिकता के आधार पर लागू करनी चाहिए। यह सरकार का नीतिगत निर्णय है और अदालत इसमें तब तक हस्तक्षेप नहीं कर सकती जब तक कि किसी का मौलिक अधिकार का उल्लंघन ना हुआ हो। मुख्यमंत्री की लाडली बहना योजना एक वर्ग आयु की महिलाओं के लाभ के लिए है, ऐसे में इसे महिलाओं के बीच भेदभावपूर्ण योजना नहीं कहा जा सकता है।
विद्वान न्यायाधीशों ने जनहित याचिका दायर करने वाले याचिका कर्ता की याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने यह भी साफ किया कि याचिका कर्ता पर कोई जुर्माना नहीं लगाया गया है। याचिका कर्ता के वकील ओवैश पेचकर ने तर्क दिया कि करदाताओं के पैसे का इस्तेमाल राजनीतिक लाभ उठाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। हाईकोर्ट ने ज़बाब में कहा कि ऐसे में क्या सरकार द्वारा बाध ,सदके और नालियां बनाए जाने पर भी आप कहेंगे कि यह राजनीति से प्रेरित है। क्या आप सरकार की निशुल्क शिक्षा देने की योजना का भी विरोध करेंगे।