आरोपी को बेमुद्दत जेल में नहीं रखा जा सकता है- मुंबई हाईकोर्ट का अहम फैसला
मुंबई (महानगर समाचार) मुंबई उच्च न्यायालय ने दोहरे हत्याकांड के एक आरोपी को जमानत देते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति को मुकदमे को लंबित रहने की वजह से बेमुद्दत समय तक के लिए कैद में नहीं रखा जा सकता है। क्योंकि यह भारत के संविधान में निहित मौलिक अधिकारों का उल्लघंन है।इस मामले में पुणे जिले की लोनावाला पुलिस ने आरोपी चंडालिया को दोहरे हत्याकांड और साजिश के आरोप में सितंबर 2015 में गिरफ्तार किया था। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि आरोपी पर लगे आरोपों की गंभीरता और मुकदमे के समापन में लगने वाले समय के बीच संतुलन बनाना होगा। एकल पीठ के न्यायमूर्ति भारती डांगरे ने कहा कि किसी अपराध की गंभीरता और उसकी प्रकृति यह एक पहलू हो सकता है जो किसी आरोपी को जमानत पर रिहा करने के विवेक का प्रयोग करते समय विचार करने योग्य है, परंतु साथ ही एक आरोपी को विचाराधीन कैदी के रूप में लंबे अवधि तक जेल में रखने के तथ्य को भी उचित महत्व नहीं देना चाहिए। मुकदमे के लंबित रहने के कारण किसी व्यक्ति को अनिश्चित काल तक हिरासत में नहीं रखा जा सकता है और यह स्पष्ट रूप से भारतीय संविधान में निहित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। और समय-समय पर किसी आरोपी को रिहा करने के विवेक का इस्तेमाल करने के लिए एक न्याय संगत आधार माना जाता है। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि मुकदमे को समय बद्ध तरीके से समाप्त करने के निर्देश जारी किए जाने के बावजूद भी इसका कोई नतीजा नहीं निकला और ऐसी परिस्थितियों में आरोपी को जमानत पर रिहा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। न्यायमूर्ति डांगरे ने कहा कि त्वरित सुनवाई सुनिश्चित किए बिना व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुरूप नहीं है।26 सितंबर2023 के आदेश में कहा गया कि यदि कोई आरोपी पहले ही प्रस्तावित सजा की महत्वपूर्ण अवधि काट चुका है तो अदालत आमतौर पर उस पर लगे आरोपों की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए उसे जमानत पर रिहा करने के लिए बाध्य होगी।