मेरे पैसे से (जनता के टैक्स ) शहर सजाकर,तुम (आयुक्त) इतना क्यों इतरा रहे हो?
मनपा आयुक्त को लगा चमकेशगिरी का रोग,और कुछ लोग उनके चमकेशगीरी में कर रहे सहयोग

जिस दिए में जले निर्धनों का लहूू,उस दिए का उजाला नहीं चाहिए।लाख गर्मी सताए, लाख ठंडी सताए।ऐसा कंबल दूशाला नहीं चाहिए।।भायंदर (अशोक निगम) जब रोम जल रहा था तब नीरो चैन की बंसी बजा रहा था, कुछ इसी तरह के हालात इन दिनों मीरा भयंदर महानगर पालिका में देखने को मिल रहा है। दो साल शताब्दी के सबसे भयंकर महामारी कोरोना काल में नेताओं ने जनता से वादा किया था कि तुम्हारे बच्चों के स्कूल फीस आधा माफ हो जाएगा, बिजली का बिल हाफ हो जाएगा और आपकी प्रॉपर्टी के टैक्स के पैसे भी किसी ने 50 प्रतिशत तो किसी ने सौ फीसदी माफ करने का वायदा किया था, परंतु कुछ माफ नहीं हुआ। जनता ने अपने बच्चे का फीस भी जमा किया, बिजली का बिल भी जमा किया और मनपा के प्रॉपर्टी टैक्स का पैसा भी जमा किया। अब दो साल के बाद पहली बार लोग दीपावली बड़े खुशी और हर्षोल्लास के माहौल में मना रहे हैं। मीरा भयंदर पूरा शहर मनपा आयुक्त के सौजन्य से दुल्हन के तरह से सजाया गया है, पूरा शहर रोशनी में नहाया हुआ है। देखने में तो बड़ा अच्छा लगता है, परंतु ये जो रोशनी की चकाचौंध दिखाई दे रही है इसका पैसा जो लाखो में मनपा ने खर्च किया है, वो हम जनता के गाढ़ी कमाई के पैसे जो टैक्स के रूप में मनपा में जमा किए हैं उसी से यह चकाचौंध दिखाई जा रही है। यह कोई सरकारी पैसा नहीं है । दीपावली में अच्छी बात है सनातन धर्म के अनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जब श्रीलंका से विजय हासिल करके वापस अयोध्या आए थे तो उनकी खुशी में अयोध्या को दुल्हन की तरह सजाया गया था। उसी के उपलक्ष्य में हम लोग हर वर्ष यह दीपावली का त्योहार मनाते हैं। परंतु सवाल यह है कि जो मनपा आयुक्त आज रोशनी से शहर को जगमगागा कर अपना नाम चमकाने में लगे हैं तब उनकी मानवीय संवेदना कहां चली गई थी जब लोग उनके यहां फरियाद लेकर जाते थे कि दो साल करोना काल में हम लोग बेरोजगार हो गए है कुछ प्रॉपर्टी टैक्स में छूट मिले। उस समय जनता के दुख दर्द को उनको याद नहीं आया। आज सिर्फ अपनी वाहवाही लूटने के लिए जनता के टैक्स के पैसे को सजावट मैं बर्बाद किया जा रहा है। इस पैसे का जो दुरुपयोग हो रहा है उसका सदुपयोग कहीं और हो सकता था। परंतु लगता है मनपा आयुक्त को चमकेशगीरी का रोग लग गया है और उसी का नतीजा है कि आज शहर में लाइटिंग के नाम पर लाखों रुपए खर्च किए जा रहे हैं जबकि महानगर पालिका आर्थिक रूप से घाटे की राह पर है।आयुक्त साहेब के कार्यशैली देखकर तो यही कहावत चरितार्थ होता है कि जब रोम जल रहा था तो नीरो चैन की बंशी बजा रहा था।